केदारनाथ हेली हादसे के बाद उबाल, डीजीसीए के खिलाफ पायलटों ने खोला मोर्चा, पायलट बोले- दोष तय करने से पहले जांच हो,कोर्ट जाने की तैयारी में हैं हेली सेवाएं
देहरादून। केदारनाथ में 15 जून को हुई हेलीकॉप्टर दुर्घटना के बाद यहां के दो पायलेटों का लाइसेंस छह माह के लिए निरस्त कर दिया गया है। पायलट इसका विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि बिना जांच के ही यह निलंबन किया गया है। जबकि हादसा मौसम की खराबी के कारण नहीं, बल्कि डीजीसीए के मिसकंडक्ट की वजह से हुआ है। उनका कहना है कि डीजीसीए ने अपनी लापरवाही का ठीकरा दो पायलेटों पर फोड़ा है। केदारनाथ हादसे में पायलेट समेत सात लोगों की मौत हो गयी थी।
मीडिया को जारी एक प्रेस रिलीज में कहा गया है कि हेलीकॉप्टर हादसा डीजीसीए की त्रुटिपूर्ण मानक संचालन प्रक्रियाओं और फ्लाइट ऑपरेशंस इंस्पेक्टर्स के भ्रामक निर्देशों का परिणाम है।
सूत्रों के अनुसार, डीजीसीए ने एफओआई और एक डिप्टी चीफ एफओआई की बिना जांचे-परखे और झूठी आकलनों के आधार पर त्वरित कार्रवाई की। दो पायलटों, जिन्होंने उसी स्थिति में सुरक्षित उड़ान पूरी की, के लाइसेंस बिना उचित जांच के निलंबित कर दिए गए। वहीं, उन अधिकारियों पर कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई, जिनके फैसलों ने इस त्रासदी को जन्म दिया।
जिस पायलट की मौत हुई, वह 9000 फीट पर निकास के एसओपी का पालन करने के दबाव में था। भले ही उस ऊंचाई पर बादल हों। एक वरिष्ठ पायलट ने मामले की जानकारी देते हुए बताया। बादलों को देखने के बावजूद, पायलट ने एसओपी का पालन करने की कोशिश की और बादलों में उड़ गया। यह मौसम से संबंधित हादसा नहीं है, यह नियामक दबाव के कारण हुआ उसी घाटी में, उसी समय, उसी रास्ते पर उड़ान भरने वाले अन्य पायलटों ने बादलों से बचने के लिए थोड़ा नीचे दृश्य स्थिति में उड़ान भरी और जीवित रहे। अब, उन्हें जीवित रहने की सजा मिल रही है।
सूत्रों का आरोप है कि हादसे के बाद, शामिल एफओआई और डीजीसीए ने अपनी त्रुटिपूर्ण एसओपी और अक्षमता को छिपाने के लिए डीजीसीए और नागरिक उड्डयन मंत्रालय को गलत जानकारी दी, जिसमें पायलटों को दोषी ठहराया गया। डीजीसीए ने इस कहानी के आधार पर तुरंत कार्रवाई की, पायलटों को निलंबित किया और ऑपरेटर के बेस मैनेजर और जवाबदेह मैनेजर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
मीडिया को दी गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन लोगों ने पायलट को घातक फैसले के लिए दबाव डाला, वे न केवल आजाद घूम रहे हैं, बल्कि अपनी नाकामी छिपाने के लिए अन्य पेशेवरों को सजा दे रहे हैं।”पायलेट और हेली संचालन कंपनियों ने इस मामले में जवाबदेही तय करने
की मांग की है। उनका कहना है कि बिना किसी जांच या एएआईबी रिपोर्ट के कार्रवाई क्यों की गई? सिविल हेलीकॉप्टर उड़ान का न्यूनतम अनुभव रखने वाले थ्व्प्े को हेलीकॉप्टर निगरानी का प्रभारी क्यों बनाया गया?
डीजी और एमईसीए को गुमराह करने, जिसके परिणामस्वरूप पेशेवर पायलटों का गलत निलंबन और सार्वजनिक बदनामी हुई, इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? पायलट समुदाय में गुस्सा बढ़ रहा है, कई लोग मांग कर रहे हैं कि जिम्मेदार अधिकारियों पर गैर-इरादतन हत्या का आरोप लगाया जाए और उन्हें नियामक पदों से हटाया जाए।
कई वरिष्ठ पायलटों का आरोप है कि मौजूदा व्यवस्था न केवल टूटी हुई है बल्कि खतरनाक है। सीनियर पायलेटों का कहना है कि बिना क्षेत्रीय इनपुट या व्यावहारिक उड़ान विचारों के ही एसओपी तैयार कर दी गयी। इसके अलावा एफओआई की नियुक्ति फिक्स्ड-विंग या पुराने सैन्य अनुभव के आधार पर की गई, जिनके पास उच्च ऊंचाई वाले सिविल हेलीकॉप्टर संचालन का हालिया व्यावहारिक ज्ञान नहीं है। दोषारोपण और डर का माहौल, जहां पायलटों को चुप कराया जाता है और अक्षम अधिकारियों की रक्षा के लिए बलि का बकरा बनाया जाता है।
“पहले, पायलटों को सुरक्षित जबरन लैंडिंग करने के लिए निलंबित किया जाता था। अब, उन्हें उस उड़ान में जीवित रहने के लिए निलंबित किया जा रहा है, जिसमें अन्य नहीं बचे। यह सुरक्षा निगरानी नहीं, यह उत्पीड़न है। कई पायलट, ऑपरेटर, और उद्योग के दिग्गज मामले को अदालत, ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। पायलेट का कहना है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है।