Breaking News
खेल मंत्री रेखा आर्या का मुख्य सचिव को सुझाव, राष्ट्रीय खेल सचिवालय में ही हों
ब्लॉक प्रमुख व ग्राम प्रधानों को प्रशासक बनाने की घड़ी पांच दिन और टली
प्रकाश सुमन ध्यानी की पुस्तक ‘उपनिषदीय दर्शन बोध’ का विमोचन किया गया
‘वनवास’ का ट्रेलर रिलीज, दिल छू लेने वाली कहानी लेकर आए नाना पाटेकर और उत्कर्ष शर्मा
यूपी निर्माण निगम को गुणवत्ताहीन निर्माणाधीन आईटीआई भवनों के मामले में नोटिस जारी
प्रेग्नेंसी के दौरान एक्सरसाइज सही है या नहीं, जानें क्या है पूरा सच
अखिलेश यादव ने संभल हिंसा को सोची-समझी साजिश बताया, पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
ब्लाक प्रमुखों एवं ग्राम प्रधानों को भी मिल सकती है प्रशासक की जिम्मेदारी
59 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर वृद्धावस्था पेंशन के लिए करें आवेदन

ईवीएम किसकी सरकार बनाएगी

रजनीश कपूर
वर्ष 2024 के लोक सभा चुनाव अपने अंतिम चरण तक पहुंच गए हैं। आने वाले दिनों में सभी को चुनावी एग्जिट पोल और 4 जून का बेसब्री से इंतजार रहेगा। सभी यह देखना चाहेंगे कि विवादों में घिरी ‘ईवीएम’ किसकी सरकार बनाएगी? हर राजनैतिक दल बड़े-बड़े दावे कर रहा है कि उसका दल या उसके समर्थन वाला समूह सरकार बनाने जा रहा है। ऐसे में यह भी देखना जरूरी है कि केंद्रीय चुनाव आयोग जिसकी कार्यशैली पर कई सवाल उठे, वह इस चुनाव को कितनी पारदर्शिता से संपूर्ण करेगा? देश का आम चुनाव हमेशा से ही एक पर्व की तरह मनाया जाता है। इसमें हर राजनैतिक दल अपने अपने वोटरों के पास अगले पांच साल के लिए उनके मत की अपेक्षा में उन्हें बड़े-बड़े वादे देकर लुभाने की कोशिश करते हैं, परंतु देश की जनता भी यह जान चुकी है कि दल चाहे कोई भी हो, राजनैतिक वादे सभी दल ऐसे करते हैं कि मानो जनता उनके लिए पूजनीय है और ये नेता उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, परंतु क्या वास्तव में ऐसा होता है कि चुनावी वादे पूरे किए जाते हैं?

चुनाव का आयोजन करने वाली सर्वोच्च सांविधानिक संस्था केंद्रीय चुनाव आयोग इन चुनावों को कितनी पारदर्शिता से कराती है इसकी बात बीते कई महीनों से सभी कर रहे हैं। चुनाव आयोग की प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि हर दल को पूरा मौका दिया जाए और निर्णय देश की जनता के हाथों में छोड़ दिया जाए। बीते कुछ महीनों में चुनाव आयोग पर पहले ईवीएम को लेकर और फिर वीवीपैट को लेकर काफी विवाद रहा। हर विपक्षी दल ने एक सुर में यह आवाज लगाई कि देश से ईवीएम को हटा कर बैलट पेपर पर ही चुनाव कराया जाए, परंतु देश की शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश देते हुए अधिक सावधानी बरतने को कहा और ईवीएम को जारी रखा। इन विवादों के बाद चुनाव् की मतगणना को लेकर फॉर्म 17सी पर एक नई बहस उठी जो देश की शीर्ष अदालत जा पहुंची। दरअसल, फॉर्म 17सी वह फॉर्म होता है जिसमें चुनाव संचालन नियम, 1961 के तहत देशभर के प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों का रिकार्ड होता है। फॉर्म 17सी में मतदान केंद्र के कोड नंबर और नाम, मतदाताओं की संख्या। उन मतदाताओं की संख्या जिन्होंने मतदान न करने का निर्णय लिया। उन मतदाताओं की संख्या जिन्हें मतदान करने की अनुमति नहीं मिली। दर्ज किए गए वोटों की संख्या।

खारिज किए गए वोटों की संख्या। वोटों के खारिज करने के कारण। स्वीकार किए गए वोटों की संख्या। डाक मतपत्रों का डाटा भी शामिल होता है। इस जानकारी को मतदान अधिकारियों द्वारा भरा जाता है और प्रत्येक बूथ के पीठासीन अधिकारी द्वारा जांचा भी जाता है। मतगणना के दिन, गिनती से पहले, फॉर्म 17सी के दूसरे भाग में प्रत्येक बूथ से गिने गए कुल वोट व डाले गए कुल वोटों की समानता को जांचा जाता है। यह व्यवस्था किसी भी पार्टी द्वारा वोटों में हेरफेर से बचने के लिए बनाई गई है। यह डाटा मतगणना केंद्र के पर्यवेक्षक द्वारा दर्ज किया जाता है। प्रत्येक उम्मीदवार (या उनके प्रतिनिधि) को फॉर्म पर हस्ताक्षर करना होता है, जिसे रिटर्निग अधिकारी द्वारा जांचा जाता है। इसके बाद ही मतों की गिनती शुरू होती है। गौरतलब है कि मतदान डाटा का उपयोग चुनाव परिणाम को कानूनी रूप से चुनौती देने के लिए किया जा सकता है। एक ओर जहां चुनाव में ईवीएम से छेड़छाड़ पर सवाल उठाया गया है वहीं फॉर्म 17सी से मतदान में हुई गड़बड़ी (यदि हुई हो तो) का पता चल सकता है।

जिस तरह पहले और दूसरे चरण के मतदान के आंकड़ों को जारी करने में देरी व बदलाव को लेकर चुनाव आयोग पर प्रश्न उठा तो विपक्ष ने फॉर्म 17सी को लेकर विवाद खड़ा कर दिया। देश की शीर्ष अदालत में चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखा और विपक्षी पार्टयिों ने अपना पक्ष रखा, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई निर्णय नहीं दिया। बीते सप्ताह देश के नामी वकील और सांविधानिक विशेषज्ञ कपिल सिब्बल ने प्रेस सम्मेलन में सभी राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों से एक चेकलिस्ट जारी की।

सिब्बल ने हर राजनैतिक दल और उनके मतदान/मतगणना एजेंटों के लिए आगामी 4 जून को आम चुनाव की गिनती से पहले जारी की गई इस चेकलिस्ट के माध्यम से यह समझाया है कि उन्हें कब क्या देखना है। सिब्बल के अनुसार ‘बहुत से लोग कह रहे हैं कि इन मशीनों के साथ संभवत: छेड़छाड़ की गई है। इसलिए, हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके साथ कोई छेड़छाड़ न हो, इससे ज्यादा कुछ नहीं।’ सिब्बल की इस चेकलिस्ट का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में है। जिस तरह चुनाव आयोग इवीएम और वीवीपैट को लेकर पहले से ही विवादों में घिरा हुआ है उसे चुनाव में पारदर्शिता का न केवल दावा करना चाहिए बल्कि पारदर्शी दिखाई भी देना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top