Breaking News
खेल मंत्री रेखा आर्या का मुख्य सचिव को सुझाव, राष्ट्रीय खेल सचिवालय में ही हों
ब्लॉक प्रमुख व ग्राम प्रधानों को प्रशासक बनाने की घड़ी पांच दिन और टली
प्रकाश सुमन ध्यानी की पुस्तक ‘उपनिषदीय दर्शन बोध’ का विमोचन किया गया
‘वनवास’ का ट्रेलर रिलीज, दिल छू लेने वाली कहानी लेकर आए नाना पाटेकर और उत्कर्ष शर्मा
यूपी निर्माण निगम को गुणवत्ताहीन निर्माणाधीन आईटीआई भवनों के मामले में नोटिस जारी
प्रेग्नेंसी के दौरान एक्सरसाइज सही है या नहीं, जानें क्या है पूरा सच
अखिलेश यादव ने संभल हिंसा को सोची-समझी साजिश बताया, पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
ब्लाक प्रमुखों एवं ग्राम प्रधानों को भी मिल सकती है प्रशासक की जिम्मेदारी
59 वर्ष की आयु पूर्ण करने पर वृद्धावस्था पेंशन के लिए करें आवेदन

आतंकवाद को निर्णायक रूप से परास्त किया जाए

देश की अपेक्षा यह है कि आतंकवाद को निर्णायक रूप से परास्त किया जाए। ऐसा नहीं हो पा रहा है, तो सरकार और सुरक्षा तंत्र को अपनी अब तक की रणनीति पर सिरे से पुनर्विचार करना चाहिए। छह जुलाई को जम्मू-कश्मीर के कुलगाम में आतंकवादियों के हमले में सेना को दो जवान मारे गए। उसके बाद जवाबी कार्रवाई में सेना ने छह दहशतगर्दों को ढेर कर दिया। मगर सिर्फ दो दिन बाद- आठ जुलाई की रात कठुआ में सेना के कारवां पर आतंकवादियों ने और भी ज्यादा घातक हमला किया। इसमें पांच सैनिकों की जान गई। बीते एक महीने में आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित अनेक घटनाएं हुई हैँ। यह याद करना उचित होगा कि पिछले नौ जून को जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल के लिए शपथ ग्रहण कर रहे थे, ठीक उसी समय जम्मू-कश्मीर में एक आतंकवादी हमला हुआ था। उसके बाद से ऐसी घटनाओं का एक सिलसिला बना हुआ है।

यह इस बात का साफ संकेत है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का एक नया दौर आया हुआ है। इससे कई गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। क्या राज्य प्रशासन एवं वहां के सुरक्षा तंत्र को इस बात का कोई सुराग नहीं था कि खास कर जम्मू इलाका आतंकवाद का नया अड्डा बन रहा है? आतंकवादियों के पास से जिस तरह के आधुनिक हथियार बरामद हुए हैं, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्हें सीमा पार से मदद मिल रही होगी। तो फिर सवाल यह उठता है कि सीमा पर चौकसी एवं घुसपैठ रोकने के उपायों का क्या हुआ? केंद्र सरकार को यह अवश्य समझना चाहिए कि ऐसी घटनाओं के लगातार होने से देशवासियों के मनोबल पर चोट लगती है। अब सोच का यह कवच भी नहीं है कि अनुच्छेद 370 के कारण आतंकवाद रोकने में कामयाबी नहीं मिल रही है। ऐसी दलीलें ज्यादा काम की नहीं हैं कि जितने सुरक्षा कर्मी मारे गए हैं, उनसे ज्यादा आतंकवादियों को ढेर किया गया है। देश की अपेक्षा यह है कि आतंकवाद को निर्णायक रूप से परास्त किया जाए।

ऐसा नहीं हो पा रहा है, तो सरकार और सुरक्षा तंत्र को अपनी अब तक की रणनीति पर सिरे से पुनर्विचार करना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के लोगों का दिल जीतना और सीमा पार के दखल को नियंत्रित करना दो ऐसी चुनौतियां हैं, जिनका मुकाबला किए बगैर संभवत: समस्या काबू में नहीं आएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top